गर्भ में जीव कब आता है (Baccha Kaise Banta Hai)

मां के गर्भ में बच्चा कैसे बनता है? मां के गर्भ में बच्चा कैसे होता है ? मां के पेट में बच्चा कैसे बनता है ? गर्भ में कैसे पलता है BABY,गर्भधारण की प्रक्रिया , जाने Pregnancy से जन्म तक का सफर

कौनसा समय गर्भधारण के लिए बेहतर

ओव्यूलेशन का समय (अण्डे का फैलोपियन ट्यूब में आना) यानि इसके एक दो दिन पहले यौन संबंध बनाना लाभकारी होता है इस समय शुक्राणु और अंडे के मिलन यानि निषेचन होने की संभावनाएं सर्वाधिक होती हैं।

सामान्यतया महिला को शुरूआत में तो पता ही नहीं होता कि वह गर्भधारण कर चुकी है, पीरियड के चौथे हफ्ते यानि अठाइस दिन के बाद भी माहवारी नहीं आती है तो प्रेगनेंसी का टेस्ट करना चाहिए ।

कैसे जाने गर्भधारण हुआ है

जैसे-जैसे भ्रूण का विकास होता है उसके आसपास पानी की थैली (एम्नियोटिक सेक) बनने लगती है जो उसके लिए तकिये का काम करती है। इसी दौरान एक प्लेजेन्टा (एक गोल डिस्क के समान ओर्गन) भी बनने लगता है

पहले महीने में शिशु का चेहरा आकार लेने लगता है, इस दौरान मुँह, आँखें, नीचे का जबड़ा और गला भी बनने लगता है साथ ही रक्त कोशिकाएं बनने शुरू हो जाती है और रक्त प्रवाह शुरू हो जाता है। पहले महीने के अंत तक भ्रूण का आकार चावल के दाने से भी छोटा होता है।

दूसरे महीने में चेहरा और अधिक विकास करने लगता है, धीरे-धीरे भ्रूण के दोनों कान बनना शुरू हो जाते हैं, दोनों हाथ – पैर और उनकी अंगुलियाँ, आहार नलिका और हड्डियाँ बनना भी आरम्भ हो जाता है।

चौथे महीने में आँखें, भौंहे, नाखुन और जनजांग बन जाते हैं। दाँत और हड्डियाँ मजबूत होने लगती हैं। अब शिशु सिर घुमाना, अंगुठा चुसना आदि शुरू कर देता है। इस महीने फीटल डोपनर मशीन से माँ बच्चे की धड़कन को पहली बार सुन सकती है।

पाँचवे महीने में सिर के बाल बनना शुरू हो जाते हैं। कंधा, कमर और कान बालों से ढके होते हैं यह बाल बहुत मुलायम और भूरे रंग के होते हैं यह बाल जन्म के बाद पहले सप्ताह तक झड़ जाते हैं

छठे महीने में शिशु का रंग लाल होता है जिसमें से धमनियों को देखा जा सकता है । इस समय शिशु के महसूस करने की क्षमता बढ़ जाती है और वह साउण्ड या म्यूजिक को महसूस कर उस पर प्रतिक्रिया देने लगता है। इस महीने के अंत तक उसका वजन 600 ग्राम और लम्बाई 30 सेंटीमीटर हो जाती है।

सातवें महीने में शिशु में फेट बढ़ने लगता है, उसकी आवाज सुनने की क्षमता और अधिक बढ़ जाती है, लाईट के प्रति अपना रिएक्शन देता है और जल्दी-जल्दी अपना स्थान बदलता रहता है। इस समय तक शिशु इतना विकसित हो चुका होता है कि किसी कारण से प्री मेच्योर डिलीवरी हो जाये तो वह जीवित रह सकता है।

आठवें महीने में शिशु की हलचल और अधिक बढ़ जाती है जिसे माँ बहुत अच्छे से महसूस कर सकती है। इस समय दिमाग का विकास तेजी से होता है और वह सुनने के साथ देख भी सकता है ।

नवें महीने में बच्चे के फेफड़े भी पूरी तरह से बन चुके होते हैं । शरीर में हलचल बढ़ जाती है पलके झपकाना, आँखे बंद करना, सिर घुमाना और पकड़ने की क्षमता भी विकसित हो जाती है ।