ART की मदद से हजारों लोग पाते हैं संतान का सुख

जो कपल्‍स नैचुरली कंसीव नहीं कर पाते हैं, वो अक्‍सर आईवीएफ की मदद लेते हैं। फर्टिलिटी ट्रीटमेंट में आईवीएफ तकनीक बहुत प्रचलित है

क्‍या है एआरटी

इस ट्रीटमेंट में महिला के एग और पुरुष के स्‍पर्म का इस्‍तेमाल किया जाता है। फीमेल की ओवरी से एग निकालने के बाद उसे भ्रूण बनाने के लिए पुरुष के स्‍पर्म से मिलाया जाता है। जब भ्रूण बन जाता है तो उसे वापस फीमेल की बॉडी में डाल दिया जाता है।

गैमेट इंट्राफैलोपियन ट्रांसफर

अगर आप आईवीए चाहती हैं लेकिन कंसेप्‍शन की प्रक्रिया को लैबोरेट्री में नहीं करना चाहती हैं तो इस स्थिति में एग को लैब में फर्टिलाइज करने की बजाय फैलोपियन ट्यूब में डाला जाता है। फैलोपियन ट्यूब में ही फर्टिलाइजेशन होता है।

जिगोट इंट्राफैलोपियन ट्रांसफर

जिगोट इंट्राफैलोपियन ट्रांसफर या ट्यूबल एम्ब्रियो ट्रांसफर भी आईवीएफ की तरह ही होता है। इसमें लैब में फर्टिलाइजेशन होता है लेकिन जल्‍द ही एम्ब्रियो को गर्भाशय की बजाय फैलोपियन ट्यूब में ट्रांसफर कर दिया जाता है।

इंट्रासिटोप्‍लास्मिक स्‍पर्म इंजेक्‍शन

इस फर्टिलिटी ट्रीटमेंट का इस्‍तेमाल वीर्य में कोई असामान्‍यता होने या कपल्‍स के कंसीव करने में फेल होने पर किया जाता है। आईसीएसआई के दौरान एग के बीच में यानि साइटोप्‍लाज्‍म में सीधा इंजेक्‍ट किया जाता है। फर्टिलाइजेशन के बाद भ्रूण को 1 से 5 दिन तक बढ़ने दिया जाता है और फिर इसे महिला के गर्भाशय में डाला जाता है।