गर्भाशय में रसौली क्या है?

गर्भाशय में रसौली ज्यादातर 30 से 50 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं में पाई जाने वाला एक नॉन-कैंसर ट्यूमर है। यह गर्भाशय की मांसपेशियों में गांठे बनने से महिला को रसौली की समस्या आती है। इसपर डॉक्टर या विशेष्यज्ञों का कहते है की रसौली कैंसर नहीं है।

गर्भाशय में रसौली  के कारण

अगर परिवार में किसी महिला को ये बीमारी है तो ये पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ सकती है। या फिर ये हार्मोन के स्त्राव में आए उतार-चढ़ाव की वजह से भी हो सकता है। बढ़ती उम्र, प्रेग्नेंसी, मोटापा भी इसका एक कारण हो सकते हैं। फाइब्रॉइड बीमारी से डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि 99 फीसदी ये बीमारी बिना कैंसर वाली होती है।

गर्भाशय में रसौली  के लक्षण

गर्भाशय फाइब्राॅइड के लक्षण कुछ इस प्रकार हैं- 1.) माहवारी के समय या बीच में ज्यादा रक्तस्राव,       जिसमे थक्के शामिल हैं। 2.) नाभि के नीचे पेट में दर्द या पीठ के निचले        हिस्से में दर्द। 3.) बार-बार पेशाब आना। 4.) मासिक धर्म के समय दर्द की लहर चलना। 5.) यौन सम्बन्ध बनाते समय दर्द होना।

गर्भाशय में रसौली  का इलाज

लक्षणों के अनुसार डॉक्टर आपको कुछ दवाईयां दे सकते हैं, जो फाइब्रॉइड के प्रभाव को कम करने का काम करती हैं। ये दवाएं इस प्रकार हैंः 1.) दर्द निवारक दवाएं 2.) गर्भनिरोधक गोलियां 3.) प्रोजेस्टिन-रिलीजिंग इंट्रायूटरिन डिवाइस  4.) गोनाडोट्रोपिन-रिलीजिंग हार्मोन एगोनिस्ट 5.) एंटीहार्मोनल एजेंट या हार्मोन मॉड्यूलेटर

वैसे तो रसौली ज्यादा उम्र की महिलाओं में होती हैं लेकिन आजकल टीनएजर्स में भी ऐसे मामले सामने आने लगे हैं। रसौली के होने का मुख्य  कारण एस्ट्रोजन (Estrogen) हार्मोन माना जाता है। एस्ट्रोजन शरीर में कम होते ही रसौली सिकुड़ने लगते हैं। यूटेरस में एक बार रसौली होने पर यह मेनोपॉज के बाद भी रहती है। जिन्हें ज्यादा मोटापा है, उन्हें रसौली होने की संभावना ज्यादा होती हैं।